सोचती थी मैं
मैं बड़े होकर दुनिया देखूँगी,
सोचती थी अपनी दुनिया को देख मैं ।
मैं बड़े होकर नए गीत लिखूँगी,
सोचती थी एक पंक्ति को लिख मैं ।
मैं बड़े होकर खुद से मिलूँगी,
सोचती थी दूसरों से मिल मैं ।
मैं बड़े होकर सबको खुश करुँगी,
सोचती थी स्वयं को खुश कर मैं ।
मैं बड़े होकर लंबी यात्रा पर जाऊँगी,
सोचती थी एक कदम लेकर मैं ।
मैं बड़े होकर दुनिया से जीत जाऊँगी,
सोचती थी एक चुनौती को हरा मैं ।
सही ही तोह थी मेरी कल्पना,
हर ईमारत एक रोज़ तो थी किसी का सपना ।।
मृदुला